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शिव दोहा-
‘सत्यम्’, ‘शिवम्’, ‘सुन्दरम्’, गूँजे मन दिन-रात।
नहीं सुहाती और कुछ, है मुझको अब बात।।काँवड़िया मन से हुआ , काँधे धर शिव नाम।
तीरथ मैं नित कर रहा, मन ही अब शिव-धाम।।शक्ति स्वयं है भक्ति – मय, महादेव का रूप।
विष्णु और बृह्मा सभी , देखें रूप अनूप।।शिव के उन्नत भाल पर , शोभित चंद अनंग।
प्रकृति छटा हो बाबरी , मन शिव उठे प्रसंग।।शिव को धारण हम करें , दो पल अपने भाल।
दिखता स्वयं कपाल में, होता हुआ कमाल।।शिव के सुंदर नाम बहु , किंतु भाव है एक।
दिव्य भाव के मूल में , कल्प करे अभिषेक।।अर्ध – नारि शिवजी बने , जग को देने ज्ञान।
नर , नारी मिल कर रहें, जग में एक समान।।औघढ़ दानी शिव महा, बेहद कृपा-निधान।
अपना लेते शीघ्र ही , सरल बुद्धि इंसान।।सीधे – सादे देव शिव , रखते सरल सुभाय।
‘भोले’ कहकर पूजते, शिवलिँग सरल बनाय।।‘ऋतु’ अदना-सा भक्त है, तुम ही हो आराध्य।
देख साधना क्षुद्र – सी, रहना नहीं असाध्य।।**********०३०३२०१९*********
स्वरचित-
ऋतुदेव सिंह ‘ऋतुराज’
गाजियाबाद