rd singh posted an update 5 years, 8 months ago
विषय-पर्यावरण
विधा- दोहा
**********************तरु – मय जंगल मिट रहे, उपजे बन कांक्रीट।
आबादी बढ़ यों रही , दीमक, मूषक, कीट।।अति दोहन भू का करे, विकसित सभ्य समाज।
किए जा रहा मूर्खता , बुद्धिमान भी आज।।नदि – नाले सब पट रहे , लिए गंद को गोद।
प्रकृति – शत्रु जो वस्तुएँ , रच हम करें प्रमोद।।विध्वंसक हथियार रच , बढ़े हमारी शान।
दुखियारी प्रकृति सहे , नित अपना अपमान।।फर्टिलाइजर से करें , बंजर माँ की कोख।
वन संरक्षण है नहीं , कोप रहा तन सोख।।हिम गल गल कर बह रही, बढ़े जलधि का रोष।
दुखी धरा , आकाश भी , देख हमारे दोष।।छोड़ बाह्य प्रकृति चलें , हम अन्तर आकाश।
पर्यावरण असन्तुलन , का मिलता आभास।।मानवीय संवेदना , का अब नहीं ख़याल।
दानव को होता भला , क्या है कभी मलाल??किन्तु विद्वजन आज भी , करते दिखें प्रयास।
जागरूक इस ओर हैं , छोड़ा नहीं विकास।।*******०५०३२०१९*******
स्वरचित-
ऋतुदेव सिंह ‘ऋतुराज’
गाजियाबाद