• rd singh posted an update 5 years, 8 months ago

    विषय-पर्यावरण
    विधा- दोहा
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    तरु – मय जंगल मिट रहे, उपजे बन कांक्रीट।
    आबादी बढ़ यों रही , दीमक, मूषक, कीट।।

    अति दोहन भू का करे, विकसित सभ्य समाज।
    किए जा रहा मूर्खता , बुद्धिमान भी आज।।

    नदि – नाले सब पट रहे , लिए गंद को गोद।
    प्रकृति – शत्रु जो वस्तुएँ , रच हम करें प्रमोद।।

    विध्वंसक हथियार रच , बढ़े हमारी शान।
    दुखियारी प्रकृति सहे , नित अपना अपमान।।

    फर्टिलाइजर से करें , बंजर माँ की कोख।
    वन संरक्षण है नहीं , कोप रहा तन सोख।।

    हिम गल गल कर बह रही, बढ़े जलधि का रोष।
    दुखी धरा , आकाश भी , देख हमारे दोष।।

    छोड़ बाह्य प्रकृति चलें , हम अन्तर आकाश।
    पर्यावरण असन्तुलन , का मिलता आभास।।

    मानवीय संवेदना , का अब नहीं ख़याल।
    दानव को होता भला , क्या है कभी मलाल??

    किन्तु विद्वजन आज भी , करते दिखें प्रयास।
    जागरूक इस ओर हैं , छोड़ा नहीं विकास।।

    *******०५०३२०१९*******
    स्वरचित-
    ऋतुदेव सिंह ‘ऋतुराज’
    गाजियाबाद