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    पद पादाकुलक छंद
    शीर्षक- इजहार
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    मैं हूँ भौंरा जैसा काला,
    लोगों को कम भाने वाला ;
    तू प्यार सभी को है करती,
    सबही के दिल में है बसती।

    तू है बेहद भोली भाली,
    दुनिया है तेरी मतवाली ;
    मैं भी हूँ तेरा मतवाला,
    मैं हूँ भौंरा जैसा काला।

    तू दिव्य-लोक से आई है,
    रंगों से सजी सजाई है;
    स्तम्भित बेहद हुई धरा,
    जब से है तूने कदम धरा।

    क्या मेरा मान बढ़ायेगी?
    जयमाल मुझे पहनायेगी;
    मैं ले आया हूँ जयमाला,
    मैं हूँ भौंरा जैसा काला।

    मैं तेरी जान बचाऊँगा,
    तेरा रक्षक बन जाऊँगा;
    नजरौटा हूँ काला-वाला,
    मैं हूँ भौंरा जैसा काला।

    तू है परियों की शहजादी,
    मैं भी तुझसे करके शादी;
    ‘ऋतुराज’ कहा जाने वाला,
    मैं हूँ भौंरा जैसा काला।

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    स्वरचित-
    ऋतुदेव सिंह ‘ऋतुराज
    गाजियाबाद