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    विषय- तिरंगा
    विधा-वीर रस

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    कलम खंग के गले मिली अरु, अपनी यारी दई जताय।
    क्रॉस बनाके अरि ललकारा, जिसमें दम है आगे आय।।
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    खडग काट दे गल वैरी के, कायर अरि जाके छिप जाय।
    श्वेत-पोश को खोज लेखनी, देती हिजड़ा उसे बनाय।।
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    कुत्ते भौकें दूर खड़े हो, असि की मार सही नहिं जाय।
    तीर चलाए बिहँसि लेखनी, दाँत तोड़, दे हाथ थमाय।।
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    हिन्द-केसरी के कर आकर, केसरिया रंग रँगी कृपाण।
    इधर लेखनी ने दुनिया में, खोल धरे सब श्वेत प्रमाण।।
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    ‘अभिनंदन ‘ पा भारत माता, झूमे गोदी हरित बनाय।
    तीनों रंग उड़ा ‘ऋतु’ नभ में, रहा तिरंगा को फहराय।।

    #जयहिन्द#

    ********०१०३२०१९******
    स्वरचित-
    ऋतुदेव सिंह ‘ऋतुराज’
    गाजियाबाद
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