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विषय- तिरंगा
विधा-वीर रस**************************
कलम खंग के गले मिली अरु, अपनी यारी दई जताय।
क्रॉस बनाके अरि ललकारा, जिसमें दम है आगे आय।।
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खडग काट दे गल वैरी के, कायर अरि जाके छिप जाय।
श्वेत-पोश को खोज लेखनी, देती हिजड़ा उसे बनाय।।
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कुत्ते भौकें दूर खड़े हो, असि की मार सही नहिं जाय।
तीर चलाए बिहँसि लेखनी, दाँत तोड़, दे हाथ थमाय।।
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हिन्द-केसरी के कर आकर, केसरिया रंग रँगी कृपाण।
इधर लेखनी ने दुनिया में, खोल धरे सब श्वेत प्रमाण।।
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‘अभिनंदन ‘ पा भारत माता, झूमे गोदी हरित बनाय।
तीनों रंग उड़ा ‘ऋतु’ नभ में, रहा तिरंगा को फहराय।।#जयहिन्द#
********०१०३२०१९******
स्वरचित-
ऋतुदेव सिंह ‘ऋतुराज’
गाजियाबाद
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