वस्त्र उद्योग के प्रदूशण को रोकने हेतु ऐन्जायम के प्रयोग
जब जल प्रदूशण अपने खतरनाक स्तर को भी पार चुका हो और साफ संकेत दे रहा हो कि अगर नही सुधरे तो मानव सभ्यता का पेय जल के अभाव में नश्ट होना तय है। जल को प्रदूशित करने वाले उद्योगों में चमड़े के बाद वस्त्र उद्योग ही आता है जहां 01 किलो कपड़े की रंगाई धुलाई छपाई आदि के लिये 50-60 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है। काटन कपड़े की स्कोउरिंग करते समय कास्टिक सोडा का प्रयोग किया जाता है जो कि जल को प्रदूशित करता है। कास्टिक सोडा के स्थान पर सेल्यूलेज ऐन्जाइम का प्रयोग करके जल प्रदूशण को कम किया जा सकता है।
ऐन्जाइम को कार्य करने हेतु बहुत विषिश्ट स्थितियों की आवष्यकता नहीं होती ये सामान्य वायुमंडलीय ताप पर कार्य करते हैं। ऐन्जाइम के प्रयोग से पानी की खपत को असाधारण रूप से कम किया जा सकता है। ऐन्जाइम की खोज उन्नीसवीं षताब्दी के द्वितीय काल खण्ड में की गई और तब से लकेर आज तक विभिन्न औद्योगिक निर्माण प्रक्रियाओं में इसके नित्य नये प्रयोग सामने आ रहे है। ऐन्जायम में अन्य प्रोटीन की तरह विभिन्न अमीनो ऐसिड थ्री डाइमेनसनल संरचना में होते हैं। विभिन्न अमीनो एसिड भिन्न-भिन्न क्रम में जुड़कर विभिन्न प्रकार के ऐन्जाइम का निर्माण करते हैं। जिनके गुण एव कार्यक्षमता अलग-अलग होती है। ऐन्जाइम बहुत ही दक्ष जैव उत्प्रेरक होते हैं। ऐन्जायम को बनाने वाले मुख्य पदार्थ जानवरों, पेड़-पौधों एवं माइक्रोव्स के उत्तकों (टिषूज) से प्राप्त होते हैं।
फन्गस से ऐन्जाइम आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं यीस्ट से ऐन्जायम यदाकदा ही प्राप्त किये जाते हैं। बढ़ते जल प्रदूशण को नियंत्रित करने हेतु एन्जाइम का प्रयोग आवष्यक है। एमाइलेज ऐन्जाइम को वस्त्र तकनीक के डिसाइजिंग में प्रयोग करके रसायनों के प्रयोग और फिर जल प्रदूशण से बचा जा सकता है। सेल्यूलेज ऐन्जाइम का प्रयोग काॅटन के कपड़ों को मुलायम बनाने, कपड़ों पर आने वाली पिल्स को दूर करने में किया जाता हैर्। ऐन्जाइम जैव उत्प्रेरक (कैटालिस्ट) का कार्य करते हैं ये किसी रासायनिक क्रिया में प्रयोग होने वाले रासायनिक उत्प्रेरक जैसे अम्ल, क्षार तथा मेटल आदि के स्थान पर प्रयोग करके उस अभिक्रिया की गति को बढ़ाने में सहायक होते हैं ये किसी भी अभिक्रिया में सहायक तो होते है लेकिन स्वयं खर्च अथवा क्षरित नहीं होते और क्रिया पूर्ण होने पर पुनः दूसरी क्रिया में प्रयोग किये जा सकते हैं। ऐन्जाइम को छः बड़े वर्गो हाइड्रोलिक, आॅक्सीडाइजिंग, रिडयूसिंग
, सिन्थेसाइजिंग, ट्रान्सफरिंग, लिटिक तथा आइसोमेराजिंग में विभाजित किया जा सकता है। अन्र्तररश्ट्रीय बायोकेमिस्ट्री संघ द्वारा 1950 में इन्टरनेषनल कमीषन आॅन ऐन्जायम का गठन किया । ऐन्जाइम सामान्य वायुमण्डलीय दाब पर कार्य करते हैं। सामान्यतः ऐन्जायम 30-70 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान पर कार्य करते है। ऐन्जाइम के प्रयोग से महंगे उपकरणों तथा क्रियाओं से बचा जा सकता है। ऐन्जाइम को उनके क्रियाओं को त्वरित करने, सामान्य स्थितियों में कार्यरत रहने, प्रदूशण कारी रसायनों का विकल्प होने, निष्चिित पदार्थ पर कार्य करने, आसानी से नियंन्त्रित करने तथा वायोडिग्रेडेविल गुणों के कारण वस्त्र उद्योग में प्रयोग किया जा रहा है।
ऐन्जाइम आधारित डिसाइजिंग- स्टार्च द्वारा माढी लगाये गये काॅटन के धागों से स्टार्च को निकालने हेतु एमाइलेज नामक ऐन्जाइम का प्रयोग करके स्टार्च को सुगर, डेक्सट्रिन तथा माल्टोज में तोड़ा जाता है। ये क्रिया 30-60 डिग्री सेंटीग्रेड तथा 5.5-6.5 वीएच के मध्य होती है।
जैव स्कोउरिंग – काॅटन रेषे की सतह से सेल्यूलोज के अतिरिक्त वैक्स आदि पदार्थो को अलग करने की प्रक्रिया को वायो स्कोउरिंग कहते हैं। इस क्रिया में सामान्यतः पैक्टीनेज तथा सेल्यूलेज ऐन्जाइम प्रयोग किये जाते हैं। पैक्टीनेज ऐन्जाइम काॅटन फाइवर के क्यूटीकिल संरचना को क्षतिग्रस्त करके पैक्टिन का पाचन कर देता है और काॅटन फाइवर तथा क्यूटीकिल के बीच के बान्ड को तोड़ देता है जबकि सेल्यूजेज क्यूटीकिल संरचना की प्राथमिक भित्ति का पाचन कर क्यूटीकिल को रेषे से अलग कर देता है। ऐन्जाइम आधारित इस क्रिया की बायोलोजिकल आॅक्सीजन डिमान्ड (वीओडी) तथा केमिकल आॅक्सीजन डिमान्ड (सीओडी) 25-45 प्रतिषत जो क्षार आधारित बायोस्कोडरिंग के 100 प्रतिषत वीओडी से काफी कम होती है। इस प्रकार ऐन्जायम का प्रयोग पर्यावरण मित्र के रूप में सामने आता है।
ब्लीचिंग- काॅटन फाइवर में प्राकृतिक रूप से उपस्थित फ्लेवेनाइड के कारण हल्का पीला भूरा रंग होता है ब्लीचिंग क्रिया का उद्देष्य इन प्राकृतिक रंग उत्पन्न करने वाले पदार्थो को रंगहीन करके पूर्ण सफेद काटन प्राप्त करना होता है। इसके लिये प्रयोग किये जाने वाले पारंपरिक रसायनों से होने वाले वायु एवं जल प्रदूशण को ऐन्जाइम के प्रयोग से नियंत्रित किया जा सकता है। एमाइलोग्लूकोसाइडेजेज, पैक्टीनेज तथा गलूकोज आक्सीडेजेज ऐन्जाइम के प्रयोग से ब्लीचिंग की जा सकती है। कुछ वैज्ञानिकों ने लैकेज ऐन्जाइम की विभिन्न प्रकारों द्वारा काटन ब्लीचिंग में सफलता पाई है। इसी प्रकार ऐन्जाइम का प्रयोग अल्ट्रासाउन्ड ऊर्जा की उपस्थिति में करके अधिक सफल ब्लीचिंग की जा सकती है। कैटालेज ऐन्जाइम द्वारा परंपरागत हाइड्रोजन पर आक्साइड ब्लीचिंग पदार्थ के प्रयोग से निकले प्रदूशित जल को षोधित किया जा सकता है।
बायोपाॅलिषिंग- यह कपड़ों की साज सज्जा करने का अदभुत तरीका है। इस क्रिया के प्रयोग से काटन कपड़े की सतह को पिल (गुठ्ठी) से रहित करके अधिक साफ तथा ठंडक प्रदान करने वाला बनाया जा सकजा है इससे कपड़ा पहले से अधिक चमकदार और मुलायम हो जाता है।
डेनिम कपड़ांे का ऐन्जाइम से उपचार- विभिन्न प्रकार की जीन्स के बढ़ते प्रयोग के कारण डेनिम कपड़े की विष्व स्तर पर मांग बढ़ रही है। जीन्स में फैषनेवल प्रभाव बढ़ाने के लिये जगह-जगह से रंग छुड़ा कर फैन्सी बनाये जाने का प्रचलन है। इसके लिये सोडियम हाइपोक्लोराइट तथा पोटेषियम परमैगनेट केे संयोजन से बने प्यूमिक स्टोन से डेनिम को जगह-जगह रगड़कर रंग छुड़ाकर फैन्सी इफैक्ट लाया जाता है परन्तु इससे कपड़े की मजबूती कम होती है तथा चमक फीकी पड़ जाती है। कपड़े का रंग एक जगह से हटकर दूसरी जगह भी लगता है। इस क्रिया में बहुत अधिक प्यूमिक स्टोन के प्रयोग से मषीन तथा पर्यावरण दोनों पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस क्रिया में सेल्यूलेज ऐन्जाइम के प्रयोग से डेनिम कपड़ों पर प्रयोग होन वाली इन्डिगो डाई को विस्थापित करके फैन्सी प्रभाव लाया जाता है।
ये तो ऐन्जाइम के वो प्रयोग हैं जो अबतक ज्ञात हो सके हैं, लकिन ऐन्जाइम की संरचना और दक्षता को जानकर अनुमान लगाया जा सकता है कि इनके अभी कितने सुखद प्रयोग दुनियाॅ के समक्ष आने बाकी हैं। बढ़ते प्रदूशण के दौर में ऐन्जाइम के प्रयोग से रसायनों के प्रयोग तथा जल प्रदूशण को काफी कम किया जा सकता है। इनके प्रयोग में सबसे बड़ी बाधा इनकी ऊॅची कीमत है। भारत जैसे देष में हरित क्रान्ति, ष्वेत क्रान्ति के बाद अगर एक प्रयास ऐन्जाइम क्रान्ति पर भी कर लिया जाय तो हमारी धरती पर प्रदूशण काफी कम हो जायेगा।
डाॅ0 मुकेष कुमार सिंह
(लेखक, उ0प्र0 वस्त्र प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं)