भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएँ

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएँ

डा. लोकेश शुक्ल 9450125954

        वर्तमान संविधान निर्माण करने से पहले, निर्माताओं ने दुनिया के विभिन्न देशों के संविधानों और भारत सरकार अधिनियम, 1935 को अत्यन्त गंभीरता से अध्ययन किया । एवम विश्व के अनेक देशो के संविधन के उदारवादी अंशो का समावेश करते हुये वर्तमान संविधान का र्निर्माण किया । वर्तमान भारतीय संविधान की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ हैं-

1. विश्व का सबसे लंबा संविधान।

    विश्व के देशो के संविधानों को लिखित और अलिखित दो भागो मे विभजित है जैसे अमेरिक और ब्रिटिश संविधान अलिखित हैै। भारत का संविधान दुनिया के सभी लिखित संविधानों में सबसे लंबा, व्यापक, विस्तृत और स्पष्ट दस्तावेज है।

मूल भारतीय संविधान में एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद थे, जिन्हें 22 भागों और 9 अनुसूचियों में विभाजित किया गया था। वर्तमान में लगभग 450 अनुच्छेद हैं,  जो ं 24 भागों और 12 अनुसूचियों में विभाजित  है।

2. संसदीय शासन प्रणाली

भारत के संविधान ने अमेरिकी राष्ट्रपति शासन प्रणाली के बजाय ब्रिटिश संसदीय शासन प्रणाली को चुना है। संसदीय शासन प्रणाली विधायी और कार्यकारी अंगों के बीच सहयोग और समन्वय के सिद्धांत पर आधारित है, जबकि राष्ट्रपति शासन प्रणाली दोनों अंगों के बीच शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर आधारित है।

3. कठोर और लचीलेपन का मिश्रण

भारत का संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला, बल्कि दोनों का मिश्रण है। कठोर संविधान वह होता है जिसमें संशोधन के लिए विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, जबकि लचीला संविधान वह होता है जिसमें उसी तरह संशोधन किया जा सकता है जैसे सामान्य कानून बनाए जाते हैं।

4. मौलिक अधिकार

भारतीय संविधान का भाग 3 मे सभी नागरिकों को छह मौलिक अधिकारों की गारंटी  है-

(क) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

(ख) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

(ग) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

(घ) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)

(ङ) सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30)

(च) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)।

मौलिक अधिकार राजनीतिक लोकतंत्र के विचार को बढ़ावा देने के लिए हैं। वे कार्यपालिका के अत्याचार और विधायिका के मनमाने कानूनों पर सीमाओं के रूप में कार्य करते हैं।

5. राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत

    संविधान के भाग में निहित राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत देश के शासन में राज्य द्वारा उठाए जाने वाले लक्ष्यों और उद्देश्यों को निर्धारित करते हैं।  “राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत भारतीय संविधान की विशेषता है। उन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीत किया जा सकता है, समाजवादी, गांधीवादी और उदार-बौद्धिक।

6. मौलिक कर्तव्य

    संविधान भाग 4  में बयालीसवें संशोधन अधिनियम द्वारा  नागरिकों के कुछ मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध करता है। मूल रूप से, अनुच्छेद 51ए के खंड (ए) से (जे) में दस कर्तव्य सूचीबद्ध किए गए थे। संविधान के 86वां संशोधन अधिनियम, 2002 खंड (के) द्वारा माता-पिता पर कर्तव्य जोड़ा गया है।

7. मजबूत केंद्रीकरण प्रवृत्ति वाला संघ

    संविधान में कहीं भी संघ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। अनुच्छेद 1 में वर्णित है कि भारत राज्यों का संघ है जिसका तात्पर्य दो बातों से है पहला – भारतीय संघ राज्यों के बीच किसी समझौते का परिणाम नहीं है और दूसरा – किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है। भारत का संविधान सरकार की संघीय प्रणाली स्थापित करता है। इसमें संघ की सभी सामान्य विशेषताएं शामिल हैं, जैसे दो सरकारें, शक्तियों का विभाजन, लिखित संविधान, संविधान की सर्वोच्चता, संविधान की कठोरता, स्वतंत्र न्यायपालिका और द्विसदन ।

8. वयस्क मताधिकार

    भारत में 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने वाला प्रत्येक व्यक्ति संसद या राज्य विधानमंडलों के चुनावों में मतदान करने का हकदार है। मूल रूप से यह आयु सीमा 21 वर्ष थी, लेकिन 61वें संशोधन अधिनियम 1988 के बाद इसे घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया।

9. स्वतंत्र न्यायपालिका

    व्यक्तियों के बीच, संघ और राज्य के बीच, संघ व राज्य और व्यक्तियों के बीच, संघ और राज्यों के बीच या राज्यों के बीच आपसी विवादों के निष्पक्ष निर्णय के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता आवश्यक है। देश में एकीकृत न्यायिक प्रणाली के शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय है। इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय हैं। न्यायालयों की यह एकल प्रणाली केंद्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्यों के कानूनों को भी लागू करती है।भारत का सर्वोच्च न्यायालय एक संघीय न्यायालय, अपील का सर्वोच्च न्यायालय, नागरिकों के मौलिक अधिकारों का गारंटर और संविधान का संरक्षक है।

10. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य

    भारतीय संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की स्थापना करता है। यह किसी विशेष धर्म को भारतीय राज्य के आधिकारिक धर्म के रूप में मान्यता नहीं देता है। भारतीय संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया था। संविधान के अनुच्छेद 25-28 धर्मनिरपेक्षता की इस अवधारणा को प्रख्यापित करते हैं।

11. एकल नागरिकता

    अधिकांश संघीय देशो में नागरिको के पास दोहरी नागरिकता होती है, भारतीय संघ की नागरिकता और संघ बनाने वाले राज्यों मे प्रत्येक नागरिक भारत का नागरिक है और चाहे वह किसी भी राज्य में रहता हो, उसे नागरिकता के समान अधिकार प्राप्त हैं।

12. शक्तियों का पृथक्करण

    शक्तियों का पृथक्करण का सिद्धांत फ्रांसीसी कानूनी प्रणाली पर आधरित है। शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के अनुसार सरकार के तीन अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों को एक दूसरे से अलग करते है।